लोकोक्ति शब्द लोक+उक्ति के योग से बना है विश्व की सभी भाषाओं में लोकोक्तियों का प्रचलन है लोक में पीढ़ियों से प्रचलित इन उक्तियों में अनुभव का सार और व्यावहारिक नीति का निचोड़ होता है
अनेक लोकोक्तियों के निर्माण में किसी घटना विशेष का विशेष योगदान होता है और उसी तरह की स्थिति परिस्थिति के समय उस लोकोक्ति का प्रयोग होता है
लोकोक्ति का अपर रूप कहावत भी है यह अपने आप में पूर्ण होती है और इसका रूप हमेशा एक सा ही रहता है

अ, आ
आधा तीतर आधा बटेर | अनमेल मिश्रण/ बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो |
आये थे हरि भजन को ओपन लगे कपास | उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना |
आप भला जग भला | अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है |
आगे कुआं पीछे खाई | दोनों/सब ओर से विपत्ति में फंसना |
आंख का अंधा नाम नयन सुख | गुणों के विपरीत नाम होना |
आम के आम गुठली के दाम | हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ |
आ बैल मुझे मार | जानबूझ कर मुसीबत में फंसना |
अंत भला तो सब भला | कार्य का अन्तिम चरण ही महत्वपूर्ण होता है |
अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय | स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है |
अपनी-अपनी डपली अपना-अपना राग | तालमेल का अभाव/सबका अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव |
अपना हाथ जगन्नाथ | अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है |
अक्ल बड़ी या भैंस | शारीरिक बल से बुद्धि बल श्रेष्ठ होता है |
अन्धा क्या चाहे दो आंखें | बिधा प्रयास वांछित वस्तु का मिल जान |
अन्धेर नगरी चौपट राजा | प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना |
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है | अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान बन जाता है |
अन्धे के आगे रोवै अपने नैना खावै | निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है |
अब पछताये होती क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत | अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं |
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता | अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है |
अधजल गगरी छलकते जाय | ओछा अदमी अधिक इतराता है |
अंधों में काना राजा | मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है |
अंधे के हाथ बटेर लगना | अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोग से अच्छी वस्तु मिलना |
अंधा पीसे कुत्ता खाय | मुर्खौं की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं असावधानी से आयोग को लाभ |
अपना रख,पराया चख | अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना |
अपनी करनी पार उतरनी | स्वंय का परिक्श्रम ही काम आता है |
आस्तीक का सांप होना | निकट के व्यक्ति का विश्वासघाती होना |
आसमान से गिरा खजूर में अटका | एक आपत्ति के बाद दूसरी आपत्ति का आ जाना |
आग लगति झोपड़ा जो निकले सो लाभ | व्यापक विनाश में जो कुछ बचाया जा सकता है वह लाभ ही है |
आधी छोड़ एक को ध्यावे, आधी मिले न सारी पावे | लोभ में सहज रूप से उपलब्ध वस्तु को भी त्यागना पड़ सकता है |
गेहूं के साथ घुन भी पिसता है | दोषी की संगति से निर्दोष भी दंडित हो जाता है |
अरहर की पट्टी और गुजरात ताला | अनमेल प्रबंध व्यवस्था |
आंखं बची और माल यारों का | अपने सामान से थोड़ा-सा भी ध्यान हटाकि समान की चोरी हो सकती है |
अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष | हम मे ही कमजोरी हो तो बताने वालों का क्या दोष |
अपनी पगड़ी अपने हाथ | अपने सम्मान को बनाए रखना अपने ही हाथ है |
आंख का अंधा गांठ का पूरा | मूर्ख किंतु संपन्न |
अंधे की लकड़ी | एक मात्र सहार |
अटका बनिया देय उधार | स्वार्थी और मजबूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है |
अक्ल का अंधा/अक्ल का दुश्मन होना | महामूर्ख होना |
इ ई
इन तिलों में तेल नहीं | किसी भी लाभ की संभावना न होना |
इमली के पात पर दंड पेलना | सीमित साधनों से बड़ों कार्य करने का प्रयास करना |
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया | संसार में व्याप्त भिन्नता |
उ ऊ
ऊंट की चोरी और झुके-झुके | गुप्त न रह सकने वाले कार्य को गुप्त ढंग से करने का प्रयास करना |
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई | बेशर्म आदमी पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता |
ऊंट किस करवट बैठता है | परिणाम मिलेंगे अनिश्चितता होना |
ऊखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर | जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो बाधाओं से क्या घबराना |
ऊंट के मुंह में जीरा | आवश्यकता की नगण्य पूर्ति |
ऊंची दुकान फीका पकवान | वास्तविक से अधिक दिखावा। दिखावा ही दिखावा। केवल बाहरी दिखावा |
ऊधो का न लेना, न मानो का देना | किसी से कोई मतलब न रखना/सबसे अलग |
उल्टे बांस बरेली को | विपरीत कार्य या आचरण करना |
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे | अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना |
ए
एक तो करेला और दूसरा नीम चढ़ा | एक साथ दो-दो दोष-प्रतिकूलतांए |
एक पंथ दो काज | एक प्रयत्न से दो काम हो जाना |
एक म्यान में दो तलवारें नहीं आ सकतीं | एक ही स्थान पर दो समान वर्चस्व के प्रतिद्वंद्वी नहीं रह सकते |
एक और एक ग्यारह होते हैं | संघ में बड़ी शक्ति है |
एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देता है | एक बदनाम व्यक्ति अपने साथ के सभी लोगों को बदनाम करवा देता है |
एक हाथ से ताली नहीं बजती | केवल एकापक्षीय सक्रियता से कार्य पूरा नहीं होता |
एक अनार सौ बीमार | वस्तु की पूर्ति की तुलना में मांग अधिक |
क
कही खेत की,सुनी खलियान की | कुछ का कुछ सुनना |
कानी के ब्याह में कौतुक की कौतुक | किसी दोष से मुक्त होने पर कठिनाईयां आता ही रहती है |
ककड़ी-चोर को फांसी की सजा नहीं दी जा सकती | साधारण से अपराध के लिए बड़ा दण्ड उचित नहीं |
काजी जी दुबले क्यों,शहर का अंदेशा है | दूसरों के कष्ट से चिंतित रहना |
कागहि कहा कपूर छुड़ाए, स्वान न्हवाए गंग | दुर्जन की प्रकृति खूब प्रचार करने पर भी नहीं बदलती |
काज परै कछु और है, काज सरै कछु और | दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुंह फेर लेते हैं |
करले सो काम भजले सो राम | एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना |
कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना | परिस्थितियां सदा एक सी नहीं रहती |
कौवा चला हंस की चाल भूल गया अपनी भी चाल | दूसरों के अधिकार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना |
कोउ नृप होय हमें का हानि | अपने काम से मतलब रखना |
कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता | कहने से जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता |
काबुल में क्या गधे नहीं होते | मूर्ख सब जगह मिलते हैं |
कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर | एक दूसरे के काम आना परिस्थितियों बदलती रहती है |
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा | अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना/इधर-उधर से सामग्री जुटा कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना |
का वर्षा जब कृषि सुखानी | अवसर बईत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है |
कोयले की दलाली में हाथ काले | बुरे काम का परिणाम भी बुरा होता है/दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं |
कंगाली में आटा गीला | संकट पर संकट आना |
काला अक्षर भैंस बराबर | बिल्कुल निरक्षर होना |
कागज की नाव नहीं चलती | बेईमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती |
ख
खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे | असफलता से लज्जित होकर क्रोध करना |
खरबूजें को देखकर ख़रबूज़ा रंग बदलता है | एक को देखकर दूसरे में परिवर्तन आता है |
खरी मजूरी चोखा काम | पारिश्रमिक सही देने पर काम भी अच्छा होता है |
खग जाने खग ही की भाषा | सब अपने-अपने संपर्क के लोगों का हाल समझते है |
खोदा पहाड़ और निकली चुहिया | अधिक परिश्रम पर लाभ कम |
खुदा गंजे को नाखून नहीं देता | अनधिकारी एवं दुर्भावी व्यक्ति को अधिकार नहीं मिलता |
ग
गंगा का आना हुआ और भागीरथ को यश | काम तो होना ही था, यश किसी को मिल गया |
गुड़ न दे पर गुड़ की सी बात तो करे | यदि किसी की मदद नहीं की जा सके तो कम से कम मधुर व्यवहार तो देना चाहिए |
गागर में सागर भरना | थोड़े में बहुत कुछ कह देना |
गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर हो गये | चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान होना |
गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त | स्वंय की अपेक्षा दूसरों का उसके लिए अधिक प्रयत्नशील होना |
गुड़ खाएं और गुलगुलों से परहेज़ | झूठा ढोंग रचना |
गांव का जोगी जोगड़ा,आन गांव का सिद्ध | अपने स्थान पर सम्मान नहीं होता |
गरीब तेरे तीन नाम-झूठा,पापी,बेईमान | गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं निर्धनता सदैव अपमानित होती है |
गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे | प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों |
गंगा गये गंगादास यमुना ग्रे यमुनादास | अवसरवादी होना |
गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा | पास की वस्तु को दूर खोजना |
गरजते बादल बरसते नहीं | कहने वाले (शोर मचाने वाले) कुछ करते नहीं |
गुरू कीजै जान,पानी पीवै छान | अच्छी तरह समझ बूझकर काम करना |
घ
घायल की गति घायल जाने | जो कष्ट भोगता है वहीं दूसरे के कष्ट को समझ सकता है |
घर खीर तो बाहर खीर | घर में संपन्नता और सम्मान है तो बाहर के लोगों से भी यही मिल जाता है |
घर का न घाट का | न इधर का न उधर का, कहीं का नहीं |
घर का जोगी जोगन, आन गांव का सिद्ध | विद्वान का अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सम्मान/परिचित की प्रेक्षा अपरिचित का विशेष आदर |
घर आये नाग न पूजै, बांबी पूजन जाय | अवसर का लाभ न उठाकर उसकी खोज में जाना |
घर मै नहीं दाने बुढ़िया चली भुनाने | झूठा दिखावा करना |
घर बैठे गंगा आना | बिना प्रयत्न के लाभ,सफलता मिलना |
घर की मुर्गी दाल बराबर | अधिक परिचय से सम्मान कम/घरेलू साधनों का मूल्यहीन |
घर का भेदी लंका ढाहे | घरेलू शत्रु प्रबल होता है |
घोड़ा घास से दोस्ती करें तो क्या खाये | मजदूरी लेने में संकोच कैसा |
घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं | सबकी एक ही स्थिति का होना |
च
चोर-चोर मौसेरे भाई | दुष्ट लोग प्राय: एक जैसे होते हैं एक से स्वभाव वालें लोगों में मित्रता होना |
चोर की दाढ़ी में तिनका | अपराधी का सशंकित होना अपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है |
चोरी का माल मोरी मैं | बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है |
चुपड़ी और दो-दो | लाभ में लाभ होना |
चील के घोंसले में मांस कहां | भूखे के घर भोजन मिलना असम्भव होता है |
चींटी के पर निकलना | बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का,नष्ट होना |
चिरग तले अंधेरा | दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना |
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता | निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता |
चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात | सुख का समय थोड़ा ही होता है |
चंदन की चुटकी भली गाड़ी | अचछी वस्तु तो थोड़ी भी भली |
चलती का नाम गाड़ी | काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते हैं |
चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए | बहुत कंजूस होना |
चोरी और सीना जोरी | अपराध भी करना और अकड़ना भी |
चोर से कहें चोरी कर शाह से कहें जागता रह | दोनों विरोधी पक्षों से संपर्क रखने की चालाकी |
चंदन विष व्यापै नहीं लिपटे रहते भुजंग | भले लोगों पर बुरों की संगती का असर नहीं पड़ता |
चंद्रमा को भी ग्रहण लगता है | भले लोगों के भी बुरे दिन आ सकते हैं |
छ
छोटे मुंह बड़ी बात | हैसियत से अधिक बातें करना |
छछुंदर के सिर में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना |
ज़
जादू वहीं जो सिर चढ़कर बोले | उपाय वही अच्छा जो कारगर हो |
जो ताको कांटा बुवै ताहि बोर तू फूल | अपना बुरा करने वालों के साथ भी भलाई का व्यवहार करो |
जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ | प्रयत्न करने वाले को सफलता/लाभ अवश्य मिलता है |
जिसकी लाठी उसकी भैंस | शक्तिशाली की विजय होती है |
जिस थाली में खाते उसी में छेद करना | विश्वासघात करना। भलाई करने वाले का ही बुरा करना।कृतघ्न होना |
जाको राखे साइयां मारि सकें न कोय | ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर किसका,कोई कुछ नही बिगाड़ सकता |
जान बची और लाखों पाये | प्राण सबसे प्रिय होते हैं |
जाकी रही भावना जैसी,हरि मूरत देखी तिन तैसी | भावनानुकूल(प्राप्ति का होना) औरों को देखना |
जाके पैर न फटी बिवाई,सो क्या जाने पीर पराई | जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे |
जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि | कवि दूर की बात सोचता है सीमातीत कल्पना करना |
जहां मुर्गा नहीं बोलता वहां क्या सवेरा नहीं होता | किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता कोई अपरिहार्य नहीं है |
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी | मातृभूमि का महत्व स्वर्ग से भी बढ़कर है |
जंगल में मोर नाचा किसने देखा | दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की कद्र होती है गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर |
जब तक सांस तब तक आस | जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना |
जल मे रहकर मगर से बैर | बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं |
जहां काम आवै सुई का करै तलवारि | छोटी वस्तु से जहां काम निकलता है वहां बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है |
जो गुड़ खाएं सो कान छिदाय | लाभ पाने वाले को ही कष्ट उठाना पड़ता है |
जैसा देश वैसा भेष | स्थान एवं अवसर के अनुसार व्यवहार करना |
जस दूल्हा तस बनी बराता | जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी |
जिसकी लाठी उसकी भैंस | शक्तिशाली की ही संपत्ति है |
झ
झूठ के पैर नहीं होते | झूठ अधिक दिन नहीं चल सकती |
झकपट की घानी आधा तेल आधा पानी | जल्दबाजी का काम खराब ही होता है |
झूठ कहे सो लड्डू खाय सांच कहे सो मारा जाय | आजकल झूठे का बोल बाला है |
ट
टके के लिए मस्जिद तोड़ना | छोटे से स्वार्थ के लिए बड़ा नुक़सान करना |
टके का सौदा नौ टका विदाई | साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक |
टेढ़ी उंगली किते बिना घी नहीं निकलता | सीधेपन से काम नहीं निकलता |
टके की हांडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली | थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना |
ठ
ठोकर लगी पहाड़ की, तोड़े घर की सिल | बाहर अपने से बलवान से अपमानित होकर घर के लोगों पर गुस्सा निकालना |
ड
डूबते को तिनके का सहारा | संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है |
ढ
ढाक के तीन पात | सदा एक सी स्थिति बने रहना |
ढोल में पोल | बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं |
त
तबेले की बला बंदर के सिर | किसी एक पर अन्य का दोष मंढ़ देना |
तीन में न तेरह में | जिसका कुछ भी महत्त्व न हो |
तिनके की ओट में पहाड़ | छोटी चीज़ के पीछे बड़े रहस्य का छिपा होना |
तुरंत दान महा कल्याण | शुभ कार्य करते ही तुरंत अच्छा फल प्राप्त होना |
तीन लोक से मथुरा न्यारी | सबसे अलग विचार बनाते रखना |
तीर नहीं तो तुक्का ही सही | पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना |
तू डाल-डाल मैं पात-पात | चालाक से चालाकी से पेश आना एक से बढ़कर एक चालाक होना |
तेल देखो तेल की धार देखो | नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो। अभी क्या है, देखते जाओ |
तेली का तेल जले मशालची का दिल जले | खर्च कोई करें बुरा किसी और को ही लगे |
तेते पांव पसारिये देती लाम्बी सौर | हैसियतानुसार खर्च करना/अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना |
तन पर नहीं लत्ता पानी खाये अलबत्ता | अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना /झूठा दिखावा करना |
तीन बुलाए तेरह आये | अनिमन्त्रित व्यक्ति आना |
तीन कनौजिये तेरह चूल्हे | व्यर्थ की नुक्ता-चीनी करना ढोंग करना |
थ
थोथा चना बाजे घना | अकर्मण्य बात अधिक करता है |
थोड़ी पूंजी धणी को खाय | अपर्याप्त पूंजी से व्यापार में घाटा होता है |
द
दबी बिल्ली चूहों से भी कान कटवाती है | किसी से दबा हुआ आदमी अपने से कमजोर लोगों के भी वश में रहता है |
दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते | मुफ्त में मिली वस्तु के बारे में क्या पसंद क्या ना पसंद |
दाख पके तब काग के होय कंठ में रोग | किसी वस्तु का उपभोग करने की स्थिति में आने पर उसका उपभोग कर सकने में असमर्थ हो जाना |
दाल में काला होना | कुछ संदेहास्पद बात होना |
दीवारों के भी कान होते हैं | गोपनीय बातचीत बहुत सावधानी से करनी चाहिए क्योंकि उसके औरों के ज्ञात हो जाने की संभावना बनी रहती है |
दुधारू गाय की लात भी अच्छी | जो व्यक्ति लाभकारी है उससे थोड़ा-बहुत नुकसान भी सहन कर लेना उचित है |
दूध का दूध पानी का पानी | सही सही न्याय करना |
दमड़ी की हांडी भी ठोक बजाकर लेते हैं | छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं |
दाल भात में मूसल चंद | किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना |
दुविधा में दोनों ग्रे माया मिली न राम | संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना |
दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है | एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है |
दूर के ढोल सुहावने लगते हैं | दूरवर्ती वस्तुएं अच्छी मालूम होती हैं दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना |
दैव दैव आलसी पुकारा | आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है |
ध
धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट का | जो दो भिन्न पक्षों से जुड़ा रहता है वह कहीं का नहीं रहता |
न
न ऊधो का लेना न मानो का देना | किसी से कोई मतलब नहीं होना |
नमाज़ छोड़ने गए रोज़े गले पड़े | एक छोटी समस्या से मुक्ति का प्रयास करने मैं बड़ी समस्या से घिरे जाना |
न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी | ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके/बहाने बनाना |
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी | झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना |
नक्कार खाने में तूती की आवाज | अराजकता में सुनवाई न होना बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं |
न सावन सूखा न भादों हरा | सदैव एक सी तंग हालत रहना |
नाच न जाने आंगन टेढ़ा | अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष ढूंढना |
नाम बडे़ और दर्शन खोटे | बड़ो में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक |
नीम हकीम खतरे जान,नीम मुल्ला खतरे ईमान | अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है |
नेकी और पूछ-पूछ | भलाई करने में भला पूछना क्या? |
नेकी कर कुएं में डाल | भलाई कर भूल जाना चाहिये |
नौ नगद,नतेरह उधार | भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्व देना |
नौ दिन चले अढ़ाई कोस | बहुत धीमी गति से कार्य का होना |
नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली | बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना |
प
पांचों अंगुलियां घी में है | पूरी तरह से सम्पन्नता |
पढ़े पर गुने नहीं | अनुभवहीन होना |
पढ़े फारसी बेचे तेल,देखो यह विधा का खेल | शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना |
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं | परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता |
पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती | सभी समान नहीं हो सकते |
प्रभुता पाया काहि मद नाहीं | अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता |
पानी में रहकर मगर से बैर करना | शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना |
प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाय | छोटा आदमी बड़े पद पर पहुंचकर इतराकर चलता है |
फ
फटा मन और फटा दूध फिर नहीं मिलता | एक बार मतभेद होने पर पुनः मेल नहीं हो सकता |
फरा सो झरा,बरा सो बुताना | जो फला है सो झड़ेगा,जो जला है सो बुझेगा अर्थात सभी लोग अपने अंत को प्राप्त होते हैं |
फिसल पड़े तो हर गंगा | काम बिगड़ जाने पर यह कहना कि यह तो किया ही ऐसे गया था |
ब
बासी बचे न कुत्ता खाय | जरूरत भर का काम करना |
बाहर बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं | कभी न कभी सबका भाग्योदय |
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद | मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के महत्त्व को आंख नहीं सकता |
बद अच्छा, बदनाम बुरा | कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है |
बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी | जब संकट आना ही है तो उससे अब तक बचा सकता है |
बावन तोले पांव रत्ती | बिल्कुल ठीक या सही सही होना |
बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज | बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना |
बांबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं | खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना |
बापू भला न भैया, सबसे बड़ा रुपया | आजकल पैसा ही सब कुछ है |
बिल्ली के भाग छींका टूकना | संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना |
बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख | भाग्य से स्वत:मिलता है इच्छा से नहीं |
बिना रोएमां भी दूध नहीं पिलाती | प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता |
बैठे से बेगार भली | खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा |
बोया पेड़ बबूला का आम कहां से खाए | बुरे कर्म कर अच्छे फल की इच्छा करना व्यर्थ है |
भ
भेड़ की ऊन कोई नहीं छोड़ता | जो कमजोर है उसका हर कोई शोषण कर लेता है |
भेड़ की लात घुटनों तक | कमजोर आदमी किसी का अधिक नुकसान नहीं कर सकता |
भई गति सांप छछूंदर जैसी | दुविधा में पड़ना |
भूल गये राग रंग भूल गये जकड़ी तीन चीज याद रही नोन,तेल, लकड़ी | गृहस्थी के जंजाल में फंसना |
भूखे भजन न होय गोपाल | भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता |
भागते भूत की लंगोट भली | हाथ पड़े सोई लेना जो बच जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा |
भैंस के आगे बीन बजाने भैंस खड़ी पगुराय | मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है |
म
मन की मन में रह जाना | इच्छा पूरी न होना |
मन के लड्डुओं से पेट नहीं भरता | केवल कल्पना कर लेने से तृप्ति नहीं होती |
मुल्ला की दौड़ मस्ज़िद तक | सीमित सामर्थ्य होना |
मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त | जिसका काम हो वह तो निष्क्रय हो और उसके मददगार सक्रिय हों |
मन चंगा तो कटौती में गंगा | मन पवित्र तो घर में तीर्थ है |
मरता क्या न करता | मुसीबत में ग़लत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है |
मानो तो देव नहीं तो पत्थर | विश्वास फलदायक होता है |
मान न मान मैं तेरा मेहमान | जबरदस्ती गले पड़ना |
मार के आगे भूत भागता है | दण्ड से सभी भयभीत होते हैं |
मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी | यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है? |
मुख में राम बगल में छुरी | ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना |
मेरी बिल्ली मुझ से ही म्याऊं | आश्रयदाता का ही विरोध करधा |
मेंढ़की को जुकाम होना | नीच आदमी द्वारा नखरे करना |
मन के सारे हार है मन के जीते जीत | साहस बनाते रखना आवश्यक है हतोत्साहित होने पर असफलता वो उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है |
मुक्त का चंदन,घिस मेरे नंदन | मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना |
य
यथा राजा तथा प्रजा | जैसा स्वामी वैसा सेवक |
यथा नाम तथा गुण | नाम के अनुसार गुण का होना |
यह मुंह और मसूर की दाल | योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना |
र
रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई | सर्वनाश होने पर भी घमंड बने रहना/टेक न छोड़ना |
रंग में भंग पड़ना | आनन्द में बांधा उत्पन्न होना |
राम नाम जपना,पराया माल अपना | मक्कारी करधा |
रोग का घर खांसी, झगड़े का घर हांसी | हंसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती है |
रोज कुआ खोदना रोज़ पानी पीना | प्रतिदिन कमाकर खना रोज कमाना रोज का जाना |
ल
लिखित सुधाकर(चंद्रमा) लिखिगा राहू | कोई अच्छी उपलब्धि के योग्य हो किंतु दुर्योग से परिणाम बुरा भोगना पड़े |
लिखे ईसा पढ़ें मूसा | न पढ़ने योग्य लिखावट |
लकड़ी के बल बन्दरी नाचे | भयवश ही कार्य संभव है |
लम्बा टीका मधुरी बानी दगेबाजी की यही निशानी | पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं |
लातों के भूत बातों से नहीं मानते | नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं |
लोहे को लोहा ही काटता है | बुराई को बुराई से ही जीता जाता है |
व
वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत | विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु वश मित्र की पहचान होती है |
विधिकर लिखा को मेटनहारा | भाग्य को कोई बदल नहीं सकता |
विनाश काले विपरीत बुद्धि | विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है |
विष दे पर विश्वास न दे | किसी को स्पष्ट कहकर उसका बुरा कर दीजिए किन्तु विश्वासघात मत कीजिए |
श
शबरी के बेर | प्रेममय तुच्छ भेंट |
शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती है | जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है |
शठे नाट्य समाचरेत | दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए |
स
सौ मन चूहे खा बिल्ली हज को चली | जीवन भर कुकर्म करने के बाद अंत समय में सुकर्म करना |
सहज पके सो मीठा होय | समुचित समय लेकर किया जानेवाला कार्य अच्छा हौता है |
समय चूकि पुन का पछिताने | अवसर बीत जाने पर फिर पछताने से क्या होता है |
साझे की हांड़ी चौराहे पर फूटती है | साझेदारी जब समाप्त होती है तो सबके सामने उजागर होती है |
सांच को आंच नहीं | सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं |
सब धान बाईस पंसेरी | अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं |
सब दिन होता न एक समान | जीवन में सुख-दु:ख आते रहते हैं, क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है |
सैइयां भये कोतवाल अब काहे का डर | अपनों के उच्च पद पर होने से बुरे कार्य से हिच करना |
समरथ को नहीं दोष गुसाईं | गलती होने पर भी सामर्थ्यवान को कोई कुछ नहीं कहता |
सावन सूखा न भादों हरा | सदैव एक सी स्थिति बने रहना |
सांप मर जाये और लाठी न टूटे | सुविधापूर्वक कार्य होना/बिना हानि के कार्य का बन जाना |
सावन के अंधे को हरा सी हरा सूझता है | अपने समान सभी को समझना |
सीधी अंगुली घी नहीं निकलता | सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता |
सिर मुंडाते ही ओले पड़ना | कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना |
सोने में सुगन्ध | अच्छे में और अच्छा |
सौ सुनार की एक लुहार की | सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा |
सूप बोले तो बोले छलनी भी बोले | दोषी का बोलना ठीक नहीं |
ह
हजारों टांकियां सहकर महादेव बनते हैं | कष्ट सहन करने से ही सम्मान मिलता है |
हथेली पर सरसों नहीं उगती | प्रत्येक कार्य बिना एक प्रक्रिया और समय के पूर्ण नहीं होता |
हाथ कंगन को आरसी क्या | प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? |
हाथी की दांत दिखाने के और,खाने के और होते हैं | कथनी और करनी में अंतर |
होनहार बिरवान के होते चीखने पात | पूत के पांव तो पलने में ही दिख जाते हैं |
हथेली पर दही नहीं जमता | हर कार्य के होने में समय लगता है |
हल्दी लगे न फिटकरी रंग चोखा आ जाय | आसानी से काम बन जाना कम खर्च में अच्छा कार्य |
हाथ सुमरिनी बगल कतरनी | कपटपूर्ण व्यवहार करना |